जय दुर्गा माता




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|| जय दुर्गा माता ||

ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥

*

जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी ।

तुमको निशदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ टेक ॥

मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को ।

उज्जवल से दो‌उ नैना, चन्द्रबदन नीको ॥ जय 0

कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै ।

रक्त पुष्प गलमाला, कण्ठन पर साजै ॥ जय0

केहरि वाहन राजत, खड़ग खप्परधारी ।

सुर नर मुनिजन सेवक, तिनके दुखहारी ॥ जय 0

कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।

कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति ॥ जय 0

शुम्भ निशुम्भ विडारे, महिषासुर घाती ।

धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती ॥ जय 0

चण्ड मुण्ड संघारे, शोणित बीज हरे ।

मधुकैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे ॥ जय 0

ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी ।

आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ जय 0

चौसठ योगिनी गावत, नृत्य करत भैरुं ।

बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु ॥ जय 0

तुम हो जग की माता, तुम ही हो भर्ता ।

भक्‍तन् की दुःख हरता, सुख-सम्पत्ति करता ॥ जय 0

भुजा चार अति शोभित, खड़ग खप्परधारी ।

मनवांछित फल पावत, सेवत नर नारी ॥ जय 0

कंचन थाल विराजत, अगर कपूर बाती ।

श्री मालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति ॥ जय 0

श्री अम्बे जी की आरती, जो को‌ई नर गावै ।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै ॥ जय 0

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