दुःख सब मान्यताओंका खेल है. दुःख धोखा है, और तेज आनंद सत्य है, इसलिए आनंद पर नहीं , दुःख पर शंका करे., दुःख मान्यता है, तेज आनंद धर्म है, मान्यता यानि की गलत धारणाये , अनुमान लगाना. मान्यता का अर्थ जो है नहीं, जैसे ही मान्यताये ज्ञान कजे प्रकाश में आती है, वैसेही गिरने लगती है.
मान्यता तोड़ने के लिए सत्य की समझ होनी जरूरी है. हममे जरा भी दुःख है अपने से पूछो की मेरे अंदर कौनसी मान्यता है. वह तो धोखा है. हम दुःख असफलता, अपमान, शोहरत सम्मान सब मान्यताओंके हिसाब से महसूस करते है.
उड़ा;- बताना हो तो के लीग असफलता की मान्यता से शरीर हत्या क्र लेते है. ( विद्यार्थी, खेत किसान, दुखी, बीमारियोंसे परेशान शरीर. ) इसकी मूल मान्यता है. मै शरीर हुं. मै मन हुं, मै बुद्धि हुं. हर एक अपने को शरीर मानता है, यह मेरा शरीर है यानी मै अलग हु.